इंतज़ार

जब जब टेलेफ़ोन की घंटी बजती है 
लगता है तुम हो 
बौखला के फ़ोन को झपट्टी हूँ 
ओर फिर निराश होके नीचे पटक देती हूँ 
काफ़ी अर्जे से यह सिलसिला चल रहा है 
अब तक तो आदत पड़ जानी चाहिए थी 
फिर क्यूँ इंटेज़ार रहता है तुम्हारे फ़ोन का मुझे 
कुछ समय पहले सब ठीक था 
भूल चुकी थी तुम्हें याद करना 
सबको बता दिया था मैंने 
के नहीं फ़र्क़ पड़ता मुझे तुम्हारे होने ना होने का 
अंदर से ख़ुद को दिलासा भी दिया था 
के संभाल के रखो अपने आँसू  
ये वो है जो चला गया है बिना कुछ गवाये
पर फिर लगा के शायद ये पहले जैसा वक़्त है 
वो हर समय मना लिया करता था 
इस बार भी मनाएगा 
मेरे पास आएगा थोड़ा रोएगा और 
मुझे अपनी ज़िंदगी में वापिस ले आएगा 
अभी तक उसकी एक ख़बर का इंटेज़ार है 
सोचा था मज़ाक़ में लेगा मेरे यह कहने को 
के कभी मुझे याद ना करना कभी मुझसे बात ना करना 
अब लगता है काफ़ी गंभीर हो गया है वह स्वभाव से 
फिर भी जब जब टेलेफ़ोन की घंटी बजती है 
लगता है के तुम हो  

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