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शबाब

शराब , धुआँ , नशे क्या कम थे , जो अब शबाब को भी गले लगा लिया । हानिकारक है यह , छोड़ दो इससे सब कहते , पर कोयले में चलकर राख बुझने तक का इंतज़ार भी कोई करता है भला । जिज्ञासा होती है , मन नहीं मानता , इस सुख की गहराई को सिर्फ़ बर्बाद होने के बाद ही महसूस किया जा सकता है । यह सफ़र भी उस हवाई जहाज़ में आए हूए आपातकालीन स्थिति जैसा है , जिसमें मौत होने की संभावना तो है पर मार्गदर्शक पर पूर्ण भरोसा भी है ।   कहते है सच्चा प्यार कुछ नहीं होता , और अगर होता भी है तो उससे भी कश व कश सोख लेना चाहिए , वरना प्यार में वफ़ा की गुंजाईश , पहली बार शराब चखने जेसी है , जहाँ दिल सिर्फ़ स्वाद में मिठास ढूँढता ,  और दिमाग़ उस कड़वाहट के एक एक घूँट   के स्वाद से फ़रेब की भविष्यवाणी कर देता।