ताबीर
बेचैनी भरी रातों में मुझे सुकून कैसे दिलाओगे नींद भरी हैं आँखों में सीने से लगाकर क्या मुझे सुलाओगे ? डर लगता है मुझे तनहा सोने में करवट बदल अकेले एक कोने में बेबस मेरे हालातों को क्या तुम सम्भाल पाओगे ? थक चुकी हूँ खुद को सम्भालते हुए ग़मों की अर्ज़ियाँ खुद ही को पेश कराते हुए मेरे दुखों को कठघरे में क्या तुम इंसाफ़ दिला पाओगे ? देखे है मैंने कई सपने मुस्कुराने लगी हूँ मैं उनमें उन हसरतों को हक़ीक़त बनाने में क्या मेरा साथ निभाओगे ? मुझमें बहुत ख़ामियाँ हैं खुद को बदलना नहीं आता मुझे मुझ जैसा पाकर क्या तुम अपना पाओगे ? मेरे रास्ते में काटें बहुत हैं मुझे सीधे चलना आता नहीं उन राहों में हाथ थामकर क्या मेरे हमसफ़र बन पाओगे ? स्वयं प्रेम बहुत निभा लिया गिरना चाहती हूँ बेज़ोर इश्क़ में प्यार की कश्तियों में डूब जाने वाले क्या