हमारी पहली मुलाक़ात ।
मुझे याद है हमारी वो पहली मुलाक़ात , जब करी थी हमने आँखो में आँखे डॉल कर बात । मार्च के महीना था वो जब देखी पहली बार तुम्हारी शक्ल प्यारी , छह माह तक बात करने के बाद भी मिलने पर बातें वही थी हमारी । मैंने पूरी त्य्यारी के साथ अपने आप को सजाया था , ताकि तुम्हें अच्छी लगूँ इसलिए हर तरकीब को अपनाया था । मिलने के समय साँसे मेरी रही थी थम , डर रही थी बेचेनी ओर घबराहट भी नहीं थी कम । सोच रही थी दिखने में मेरा दोस्त होगा केसा , एकदम अलग या जो तस्वीर देखी है वेसा । जब वह घड़ी आयी मेरे अंदर भी बड़ गयी थी बेताबी , तुम्हें वहाँ देख के दिल को जेसे मिल गयी थी खिताबी । तुम वही बहार खड़े मेरा इंटेज़ार कर रहे थे , जब मुझे देखा तो मंद मंद ही मुस्कुरा रहे थे । मेरे नज़दीक आके मुझे गले से लगा लिया , मानो इतने वक़्त का प्यार जेसे उस पल भर की नज़दीकी ने जाता दिया । इक सुकून सा मिला तुम्हें गले लगा कर , मुस्कुराई थोड़ा फिर से बेचेनी चढ गयी सर पर । बेथ के अपनी शुरुआत केसे हुई उस पर की थोड़ी सी बात , ओर हमारी कभी ना ख़त्म होने वाली बाटों से कट जाने वाली थी पूरी रात । ग़म तो सिर्फ़ घर वापि...