ताबीर

बेचैनी भरी रातों में

मुझे सुकून कैसे दिलाओगे 

नींद भरी हैं आँखों में 

सीने से लगाकर क्या मुझे सुलाओगे?


डर लगता है मुझे तनहा सोने में 

करवट बदल अकेले एक कोने में 

बेबस मेरे हालातों को 

क्या तुम सम्भाल पाओगे?


 थक चुकी हूँ खुद को सम्भालते हुए 

ग़मों की अर्ज़ियाँ खुद ही को पेश कराते हुए 

मेरे दुखों को कठघरे में 

क्या तुम इंसाफ़ दिला पाओगे


देखे है मैंने कई सपने

मुस्कुराने लगी हूँ मैं उनमें

उन हसरतों को हक़ीक़त बनाने में 

क्या मेरा साथ निभाओगे?


मुझमें बहुत ख़ामियाँ हैं

खुद को बदलना नहीं आता 

मुझे मुझ जैसा पाकर 

क्या तुम अपना पाओगे

 

मेरे रास्ते में काटें बहुत हैं 

मुझे सीधे चलना आता नहीं

उन राहों में हाथ थामकर 

क्या मेरे हमसफ़र बन पाओगे?


स्वयं प्रेम बहुत निभा लिया 

गिरना चाहती हूँ बेज़ोर इश्क़ में 

प्यार की कश्तियों में डूब जाने वाले 

क्या मुझसे उतनी मोहब्बत कर पाओगे?  


फिर कह देती हूँ के राह आसान नहीं 

मेरी मंज़िल का फ़िलहाल कोई नाम नहीं 

भटक जाऊँ अलग दिशाओं में जो कभी 

तो ढाल बनकर क्या रहनुमा कहलाओगे


बेचैनी भरी रातों में

मुझे सुकून कैसे दिलाओगे 

नींद भरी हैं आँखों में 

सीने से लगाकर क्या मुझे सुलाओगे?

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