अल्पकालिकता
कम समय ही सही ,
महत्वपूर्ण घंटे दे गए ।
वो विचार जो दस मास में ना आये,
एक दिन में उत्पन्न हो गए ।
तुमहे मिलना हसरत नहीं थी मेरी,
और ना ही कोई इबादत।
ये शब्दों की अदला-बदली का ही कमाल था,
वरना बातों की पिटोरी लिए ना जाने कितने शख्स घूमा करते हैं ।
आकर्षित हम नहीं, हमारे मन हुए,
भावनाओं को समझने वाले उन लाखों में एक तुम ही तो थे,
जिसने एक मुलाक़ात में मेरे सोचने के मायने बदल दिए ।
रूप-रंग से ज़्यादा आकर्षित थी तुम्हारी सोच,
इसलिए हर शब्द मुझे मोहित कर रहे थे ।
हो सकता है हमारे समझने की प्रक्रिया अलग हो,
पर शायद कानो में जा रही वह नयी बातें मेरे मस्तिष्क को सोचने पर मजबूर कर रही थी ।
जिस मानसिकता के कारण मैंने खुद को इन रिश्तों के बंधन से वंचित रखा,
अब समय आ गया था उस बंधन को मुक्ति देने का ।
अपने अंदर के संदेह को ख़त्म करने का,
लोगों में विश्वास करके उन्हें मौक़ा देने का ।
और फिर वह चंद घंटे पूर्ण हुए,
तब तक तो तुम जा भी चुके थे ।
पर जाते जाते मुझे मुझ में ही नया बना गए ।।
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