अनकही बातें

कितनी बातें कहनी थीं तुमसे
कितना कुछ ओर बताना था
शब्दों की कमी नहीं थीं मेरे पास
कमी थी तो सिर्फ़ वक़्त की
जो तुम मुझे ना दे पाए
कमी थी तुम्हारे स्वाभिमान को लगे वो ठेस की
जिसके रहते तुम चाह कर भी कुछ ना कह पाए
एसा नहीं है की तुमने कोशिश नहीं करी
तुमने हर वक़्त प्रयास किया
पर सीधी बात ना कर सब घूमी फ़ीरि बातें हुई,
ओर बस यूँही वक़्त निकलता गया
फिर कोशिश वहाँ से भी हुई
ओर यहाँ से भी हुई
बस फ़र्क़ ये रह गया
की अब आदत पड़ गयी है
इस सन्नाटे की मुझे.


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