निस्तब्धता.
अंधकार से मित्रता थी मेरी,
इसीलिए पूर्णिमा की वो हसीन शाम का संदेश समय से पहले मिल गया।
उन काले बादलों को रोशनी देता हुआ मेरा काँच का ग्लास मानो चाँद का काम कर रहा था,
इसीलिए शबाब के रहते शराब का चयन करना उचित लगा मुझे।
साँझ का समय खिड़की से चंद्रमा को ताकने में निकल रहा ही था के,
ग्लास में रखी वह मनोज्ञ अंगूरी मदिरा ने मुझे मोहित कर दिया।
ठंडी हवा के झोंके सुधबुध होश गवाने पर मजबूर कर रहे थे,
और मेरा मदहोश मन तारों की अनुपस्थिति से निराश हो रहा
था ।
काफ़ी गंभीर ख़याल में खो गयी थी उस शाम,
वरना साधारण स्तिथि में एसे विचार अक्सर बेतुखे लगते हैं ।
दोष नशे का नहीं, उस पार मौजूद वह दृश्य का था,
जिसका प्रदर्शन तो पूरी कायनात भी ना कर पाती ।
मेरी बंज़ारी रूह उस वातावरण में एसी सम्मोहित हुई,
के औषधी लेने पर भी मेरे दिमाग़ में से उस विशिष्ट रात का खुमार ना उतरा।।
-DS
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