अव्यवस्था
प्यार किसी और से हसरत किसी और की ओर हक़ीक़त में कोई और कश्मकश भरीं मेरी इस ज़िंदगी के पाठ कई सारे हैं अपने दिल के चार टुकड़े करके सब में बराबर बाटें हैं ख़ुद को कैसे समझाऊँ , इस मन को कैसे बहलाऊँ जिससे प्यार है मुझे , है किसी और से उसे जब करता है उसकी बातें , आँसू अंदर रहके भी बह जाते हैं मेरे फिर मन को समझा लेती हूँ , दूसरी जगह ध्यान भटका लेती हूँ हसरत जिसकी होती है उसे ही प्रेमी बना लेती हूँ प्रेम भावना से बहुत परह है मेरा दिल हर परिस्थिति में बस फ़रेब का प्रचलन कर देता है जीवन में कुछ ख़ुशी भी आए फिर भी दुःख का रस चख लेता है इतनी उलझनों से झुँझ के किसी ने क्या पाया है अब तो उस ज़माने की चाह रखते हैं जहाँ प्रेम के बदले सिर्फ़ प्रेम ही आया है विश्वासघात के सहारे तो ज़माने निकाल दिए हैं जिससे इन नज़रों में प्यार के मायन...