भाव : रावण
शिव का दिया वरदान तो खुद शिव भी नहीं तोड़ सकते, तो रावण को तो अमर होना ही था । ग़लत बतायी गयी है इतिहास में कहानी, वरना जो रावण को समझ लेता, वो उसे मिले हुए उस वरदान की बारीकियों को भी समझ जाता । भगवद गीता में कहते हैं कि, रूह विराम ले ले कर अपनी लंबी यात्रा की समाप्ति करती है । और शरीर उस यात्रा में मात्र कुछ छन व्यतीत करने वाले विश्रामालय का दायित्व निभाता है । रूह का कर्तव्य है यह यात्रा करना, क्यूँकि इसी यात्रा में उसे अपने अंतिम गंतव्य तक पहुँचना होता है । और इसी वजह से मनुष्य का शरीर केवल एक साधन है सही मार्ग पकड़ने का । इस सफ़र में रूह की लड़ाई उन जागरूक होने वालीं भावनाओं से हैं जो मोक्ष प्राप्ति की प्रक्रिया में बाधा बनती है । रूह को शरीर की ज़रूरत तब तक है जब तक वो अपने सारे भाव को त्याग कर खुद में लीन होकर ईश्वर में विलीन ना हो जाए।। रावण भले ही दशानन बताया गया हो, किंतु वो है अनेक । वह एक असुर के रूप में नहीं एक भाव के रूप में अमर है । वह क्रोध और अहंकार के भाव में हर रूह पर शासन करता है । शा...